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राम सेतु
राम सेतु, यह एक ऐसी कहानी है जिसके बारे में लोग जानने के लिए उत्सुक रहते है। कुछ लोग इसे झूठ मानते है, तो कुछ लोग इसे आस्था की नजरों से देखते है, तो कुछ लोग विज्ञान के नजरिये से देखते है। आप किसी भी रूप में इसे देखे, लेकिन जो सच है उसे झुठलाया नहीं जा सकता है। हालही में अभी अमेरिका के एक चैनल ने यह दावा किया की राम सेतु सच में मौजूद है। चैनल वालों का कहना है की रामेश्वरम और श्रीलंका के बीच में जो पत्थर मिलते है वो करीब सात हजार साल पुराने है। और उन वैज्ञानिको का यह भी मानना है की रामसेतु इंसानो द्वारा बनाया गया पुल है। इससे यह साबित हो गया है की विज्ञान के तमाम जानकर भी रामसेतु के अस्तित्व को मानने लगे है।
राम सेतु रामायण काल की एक ऐसी अद्भुत घटना है को जो अपने अंदर सच्चाई को समेटे हुए है। जो इस बात की पुष्टि करता है की रामायण में लिखी हुई सारी बातें सत्य है। और उस सत्य को साबित करता है " राम सेतु "।
आज इस पोस्ट में हम राम सेतु से सम्बंधित कुछ जानकारी आप लोगों बताने वाले है। जिससे आपको भी यह विश्वास हो जायेगा की राम सेतु वाकही में था और रामायण नाम का जो ग्रन्थ है वो सत्य है।
रामेश्वरम और श्रीलंका के बीच में लगभग आठ टापू ( Island ) है। जिसकी जानकारी ज्यादातर लोगों को नहीं है। उन टापुओं में रामकथा से सम्बंधित कई सबूत आजभी मौजूद है। जो यह साबित करते है की रामायण वास्तव में एक घाटी हुई घटना है। वहां पर मौजूद है पानी में तैरने वाले पत्थर। उन पत्थरों ने वैज्ञानिकों को भी हैरान कर दिया है।
अथाह समुन्दर के बीच वह राम सेतु कहाँ है ? और अगर वह है तो किस रूप में मौजूद है ?
यदि प्रभु श्रीरामजी की कहानिया सच्ची है तो हमें वह सबूत भी जरूर मिलेंगे जो रामायण में बताये गए है। वाल्मीकि रामायण के अनुसार सबसे बड़ा सबूत है वह शिवलिंग, जो रामेश्वरम में मौजूद है। जिसे श्रीरामजी ने अपने हाथो से स्वयं बनाया था। और उसे स्थापित किया था। आज उस शिवलिंग को हम सब रामेश्वरम के नाम से जानते है। भारत और श्रीलंका में बीच मौजूद वो आठ टापू जो की राम सेतु का सबूत बनकर आज भी वहां पर उपस्थित है। सबसे बड़ा सबूत है समुन्दर के बीचो-बीच पानी पर तैरने वाले वो पत्थर, जो की आज भी वहां पर मौजूद है और रामकथा के रामसेतु की आजभी गवाही देते है।
रामेश्वरम धाम रामायण की कहानी का सबसे बड़ा एवं सबसे अहम् पड़ाव है। रामेश्वरम के बारे में तो आप लोग भी बहुत कुछ जानते होंगे। परन्तु आज हम रामेश्वरम की नहीं राम सेतु के बारे में बात करेंगे।
जब सीता की खोज में प्रभु श्रीराम के साथ सारी वानर सेना रामेश्वरम के उस समुद्रतट पर आयी तो इतने विशाल समुन्द्र को देख कर सभी के पांव जहाँ के तहाँ थम गए। बाल्मीकि जी ने रामायण में लिखा है की उस विशाल समुन्द्र को पार करने के लिए वानर सेना ने पत्थरों का पुल बनाया था। रामायण के हिसाब से राम सेतु का निर्माण वही से शुरू हुआ था।
रामेश्वरम, रामायण का वह पड़ाव है जहाँ पर प्रभु श्रीराम की भक्ति भी दिखाई देती है और शक्ति भी देखे देती है। प्रभु श्रीरामजी की भक्ति एवं शक्ति सुन्दरकाण्ड की इस चौपाई से चरितार्थ होती है।
" विनय न मानत जलधि जड़, गए तीनि दिन बीति।
बोले राम सकोप तब, भय बिनु होइ न प्रीति।। "
प्रभु श्रीराम ने समुंद्रदेव की पूजा कहाँ पर की थी ?
रामेश्वरम में एक स्थान है जिसे " आदि-रामेश्वर " कहा जाता है। ऐसी मान्यता है की उस स्थान पर प्रभु श्रीरामजी ने तीन दिनों तक समुद्रदेव की पूजा एवं तपस्या की थी। परन्तु समुंद्रदेव के प्रगट ना होने पर उन्होंने समुन्द्र को अपनी शक्ति दिखाई थी।
आज उस स्थान पार जो मंदिर बना है उस मंदिर का नाम है " दर्भशयनं तिरुपलानी मंदिर "। ऐसा कहा जाता है की समुंद्रदेव ने खुद वहां पर प्रकट होकर प्रभु श्रीरामजी को पानी पर पत्थरों से सेतु बनाने की युक्ति सुझाई थी। और उन्होंने प्रभु श्रीरामजी को यह आश्वासन भी दिया की वो उस जगह पर समुन्द्र की लहरों को शांत कर देंगे। इस तरह रामसेतु के ब्लूप्रिंट बनकर तैयार हुआ, जिसके चलते राम सेतु का निर्माण संभव हो पाया।
सीताजी की अग्नि-परीक्षा कहाँ हुई थी ?
बहुत ही चमत्कारी है रामेश्वरम धाम। यहाँ आने वाले हर यात्री के जबान पर सिर्फ राम सेतु का ही नाम रहता है। रामेश्वरम की वो जगह जहाँ पर लंका पर हमले से पहले प्रभु श्रीराम की वानर सेना ने अपना पड़ाव डाला था। और प्रभु श्रीराम ने अपने हाथों से रेत का शिवलिंग बनाया था। जहाँ देवी सीता की अग्नि परीक्षा हुई थी। इस इलाके के प्रत्येक जगह में राम का वास है। यहाँ की हर प्रथा, हर मान्यता सीधे श्रीराम से ताल्लुक रखती है। उस जगह का नाम है " अग्नि तीर्थम "। यहाँ पर जाने वाले प्रत्येक यात्री को पहले स्नान करना पड़ता है इसके बाद मंदिर में प्रवेश मिलता है। और दर्शन होते है।
प्रभु श्रीराम के द्वारा बनाया गया शिवलिंग कहाँ पर स्थित है ?
रामेश्वरम के इस मंदिर में रेत से बने उस शिवलिंग का दावा किया जाता है, जिसे त्रेतायुग में प्रभु श्रीराम ने स्वयं अपने हाथों से बनाया था। रामायण के अनुसार प्रभु श्रीराम ने लंका से लौट कर देवी सीता की मौजूदगी में अपने हाथो से बनाया था।
रामेश्वरम में रामनाथ स्वामी मंदिर की अपनी एक अलग ही पहचान है। इस मंदिर में राम और ईश्वर का मिलन हुआ था। इस लिए इसे रामेश्वरम कहा जाता है। यहाँ की कलाकृतिया और भव्यता बस देखते ही बनती है। यह वही जगह है, जहाँ पर प्रभु रावण के वध के बाद लौटे थे और शिवजी की पूजा की थी।
प्रभु श्रीराम को ब्रम्ह-हत्या पाप से मुक्ति कैसे मिली थी ?
रामनाथ तीर्थ में 22 तीर्थ कुंड है। जिनका पानी बहुत ही मीठा है। समुन्द्र के इतने करीब होने के बावजूद इन कुंडो का पानी मीठा होना अपने आप में एक चमत्कार है। क्योंकि जहाँ की हवाओं में ही खारापन हो वहां का पानी मीठा कैसे हो सकता है। विज्ञानं के पास भले ही इस सवाल का जवाब हो या ना हो। लेकिन रामायण से जुड़ी आस्था के आगे सब फीके है।
आप सोच रहे होंगे की वहां पर 22 कुंड कहाँ से आया ? तो आपको बताते चलें की इन 22 कुंडों की कहानी भी श्रीराम के ब्रम्ह हत्या पाप से जुड़ी हुई है। रामायण के अनुसार रावण एक ब्राम्हण था। और ब्राम्हण का वध करने से ब्रम्ह हत्या का पाप लगता है। ये बात प्रभु श्रीराम भली-भांति जानते थे। इसलिए रावण-वध के पश्चात वे इन 22 कुंडों के पास आये थे। इन कुंडों में 22 तीर्थों का पानी है। इन कुंडों में स्नान के पश्चात् शिवलिंग के दर्शन मात्र से मनुष्य के सारे पाप नष्ट हो जाते है। प्रभु श्रीराम ने भी वही पर ब्रम्ह हत्या पाप से मुक्ति पायी थी।
रामसेतु की नीव कहाँ रखी गयी थी ?
रामेश्वरम से 18 किलोमीटर दूर धनुषकोड़ी है। इन दोनों जगहों के बीच में आपको रामसेतु के पत्थर (पानी में तैरने वाले पत्थर) देखने को मिल जायेंगे। रामायण के अनुसार धनुष्कोडी ही वह जगह है जहाँ पर रामसेतु की नीव रखी गयी थी। और वहां पर आज भी रामसेतु को देखे जाने का दावा किया जाता है।
यदि आप सेटेलाइट से देखेंगे तो आपको धनुषकोढ़ी से श्रीलंका के मन्नार के बीच में एक पतली सी रेखा दिखाई देगी। वो पतली से रेखा ही रामसेतु है। इसे एडम्स ब्रिज (Adams Bridge) भी कहते है। google map से देखने पर आपको धनुष्कोडी और श्रीलंका के मन्नार के बीच में आपको 8 छोटे-छोटे टापू दिखाई देंगे। इन छोटे टापुओं को रामसेतु का अवशेष कहा जाता है।
धनुषकोढ़ी पहले के समृद्ध शहर हुआ करता था। लेकिन आज वहां पर केवल खंडहर रह गया है। क्योंकि 1964 में आये भयानक चक्रवात तूफान ने वहां पर सब कुछ ख़त्म कर दिया था। धनुष्कोडी में पर्यटक केवल दिन में ही जाते है और वहां पर सैर करते है। रात होते ही वहां पर सन्नाटा छा जाता है।
रामसेतु को श्रीराम ने क्यों नष्ट कर दिया था ?
धनुष्कोडी की एक-एक जगह और खंडहर यहाँ के पुराने इतिहास को बयां करता है। धनुष्कोडी का अंतिम सिरा रामसेतु के पहले पत्थर को रखने की आज भी गवाही देता है। ऐसा कहा जाता है की श्रीलंका से लौटने के बाद विभीषण के कहने पर प्रभु श्रीराम ने उस रामसेतु को धनुष मार कर नष्ट कर दिया था।
दो महासागरों का मिलन ?
यदि आप नाव से धनुष्कोडी और श्रीलंका के बीच यात्रा करते है तो आपको दो महासागरों के आपस में मिलने का वो स्थान दिखाई देगा। एक तरफ से हिन्दमहासागर और दूसरी तरफ से बंगाल की खाड़ी का पानी दोनों साफ-साफ देखे जा सकते है।
रामसेतु के कितने नाम है ?
तमिलनाडु के रामेश्वरम में मौजूद राम सेतु का नाम तो आप आप सभी को पता हैं, लेकिन क्या आपको ये बात पता है कि रामसेतु के कई अन्य नाम भी है। इस ब्रिज को आदम का पुल (Adam's Bridge), नल नील सेतु, और सेतु बंध के नाम से भी जाना जाता है।
चूंकि इस ब्रिज को भगवान राम और उनकी वानर सेना द्वारा बनाया गया था, इस वजह से ज्यादातर लोग इस पुल को रामसेतु के नाम से जानते हैं। लंका पर विजय प्राप्त करने के लिए प्रभु श्रीराम की वानर सेना ने पांच दिनों में बनाया था रामसेतु।
राम सेतु की सच्चाई क्या है?
कहते हैं कि भगवान श्री राम ने रामेश्वरम से लंका तक माता सीता को लाने के लिए वानर सेना की सहायता से एक पुल का निर्माण करवाया था, जिसे आज रामसेतु के नाम से जाना जाता है। रामसेतु में प्रयोग होने वाले पत्थर आज भी पानी में तैरते हुए दिखाई देते हैं।
भारत के दक्षिणपूर्व में रामेश्वरम और श्रीलंका के पूर्वोत्तर में मन्नार द्वीप के बीच चूने की उथली चट्टानों की चेन है, इसे भारत में रामसेतु और दुनिया में एडम्स ब्रिज (आदम का पुल) के नाम से जाना जाता है।
रामसेतु पुल पर मुस्लिमों का दवा !
हिन्दू धर्मग्रन्थ रामायण के हिसाब से प्रभु श्रीराम ने लंका तक पहुँचने के लिए रामसेतु का निर्माण किया था। परन्तु मुस्लिम धर्म में भी राम सेतु को लेकर दावा किया गया है। उनके जानकारों के मुताबिक रामसेतु का निर्माण आदम ने किया है। आदम ने ही इस पुल का निर्माण किया और आदम की चोटी तक पहुँच कर वहां पर एक पैर पर 1000 वर्षों तक वह पश्चाताप में खड़ा रहा। इस लिए इस पुल को आदम का पुल (Adam,s Bridge) भी कहा जाता है।
रामसेतु कैसे टूटा?
रामायण के अनुसार प्रभु श्रीराम ने लंका से वापस लौट कर रामसेतु को अपनी धनुष के प्रहार से नष्ट कर दिया था। और वैज्ञानिकों के अनुसार सन 1480 में रामसेतु एक चक्रवात तूफान के कारण टूट गया और समुद्र का जल स्तर बढ़ने के कारण यह सेतु समुन्द्र में डूब गया।
कितने दिन में बनकर तैयार हुआ था रामसेतु ?
भारतीय सेटेलाइट और नासा के द्वारा लिए गए चित्रों में धनुषकोडि से मन्नार तक जो एक पतली सी द्वीपों की रेखा दिखती है, उसे ही आज रामसेतु के नाम से जाना जाता है। रामसेतु उस समय सिर्फ पांच दिनों में ही बन गया था।
रामायण के अनुसार रामसेतु की लम्बाई और चौड़ाई कितनी है ?
बताया जाता है की जब इस सेतु का निर्माण हुआ तब इसकी लंबाई 100 योजन और चौड़ाई 10 योजन की थी। रामसेतु को बनाने के लिए रामायण काल में श्री राम नाम के साथ, उच्च तकनीक का प्रयोग किया गया था। ऐसा कहा जाता है की पत्थरो पर राम नाम लिखकर समुन्द्र में डाला गया जिससे वे तैरने लगे तथा बड़े-बड़े पेड़ों से उस पुल को बांधा गया था। जिसकी वजह से वह पुल काफी मजबूत बना था। और यह कार्य नल और नील को दिए गए श्राप के कारण ही संभव हो सका।
राम सेतु कितने वर्ष पुराना है?
रामसेतु पर साइंस चैनलों ने वैज्ञानिक टेस्ट का हवाला देते हुए अपनी एक रिपोर्ट में कहा है की, धनुष्कोडी और श्रीलंका के मन्नार के बीच लगभग 50 किलोमीटर की दुरी चट्टानों से बनी है। और ये चट्टानें करीब 7100 साल पूरानी है। और वहां पर जो रेत (बालू) है जिस पर ये चट्टानें टिकी हुई है, वो लगभग 4000 साल पूरानी है। कई रिपोर्ट के मुताबिक जो पानी में तैरने वाले पत्थर है वो भी लगभग 7000 साल पुराने है। अन्ना यूनिवर्सिटी के मुताबिक रामसेतु 18400 साल पुराना है। GSI की रिपोर्ट के अनुसार यह पुल करीब 7000 से 18000 साल पुराना है। हर युग में अपने समय के हिसाब से वैज्ञानिको ने उस रामसेतु की जाँच की और अपनी अपनी रिपोर्ट प्रस्तुत की है। इसलिए कौन सी रिपोर्ट सही है यह अनुमान लगाना काफी कठिन है। की कौन सी रिपोर्ट सही है।
आज के हिसाब से रामसेतु कितने किलोमीटर लंबा था?
रामसेतु - धर्मग्रंथों के अनुसार, त्रेतायुग में समुद्र पर भारत और लंका के बीच एक विशाल सेतु (पुल) बनाया गया था. वह 100 योजन लंबा और 10 योजन चौड़ा था।
आज की गणना के हिसाब से :-
1 योजन = 8 मील,
1 मील = 1.6 किलोमीटर,
( 1.6 X 8 = 12.8 किलोमीटर )
1 योजन = 12.8 किलोमीटर
100 योजन = 1280 किलोमीटर लम्बा था।
10 योजन = 128 किलोमीटर चौड़ा था।
श्रीराम की सेना ने उसे 5 दिन में तैयार कर दिया था। और उस पुल को पैदल चलने योग्य बनाया था। परन्तु आज के हिसाब से धनुष्कोडी और मन्नार के बीच की दुरी लगभग 50 किलोमीटर है। धार्मिक मान्यताओं के अनुसार यह पुल बहुत लम्बा है। परन्तु हकीकत में यह दुरी काफी कम है। उस युग में इतनी ज्यादा दुरी कैसे ली गयी ? इसका जवाब तो शायद समय के गर्भ में ही छिपा हुआ है।
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