पत्नी बहुत घबरा गयी, और बोली क्या हुआ ? "ऐसा क्या माँग लिया है आपकी माँ ने ?" ऐसा कहकर उसने अपने पति के हाथों से ............
एक दिवाली ऐसी भी होनी चाहिए।
साथियों आपने तो दिवाली बहुत मनाई होगी। चलिए इस दिवाली कुछ अगल करते है। मुझे यकीन है की आपने यदि इस पोस्ट को पूरा पढ़ लिया तो आपका ह्रदय परिवर्तन अवश्य हो जायेगा। आप अपने आंसुओं को रोक नहीं सकते।
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एक परिवार दिवाली को ख़रीदारी करने बहुत जल्दीबाजी थी। पति महोदय ने अपनी पत्नी से कहा, ज़ल्दी करो, मेरे पास टाईम नहीं है। यह कह कर वह कमरे से बाहर निकल गया। तभी बाहर बरामदे में बैठी माँ पर उसकी नज़रें पड़ी।
कुछ सोचते हुए वह वापस अपने कमरे में आया और अपनी पत्नी से बोला,अरे जानू तुमने माँ से भी पूछा कि उनको इस दिवाली पर क्या-क्या सामान चाहिए?
पत्नी बोली, नहीं पूछा। अब तुम्हारी माँ को इस उम्र में क्या चाहिए होगा यार, दो वक्त की रोटी और दो जोड़ी कपड़े बस। इसमें पूछने वाली कौनसी बात है? आपभी ना !
यह बात नहीं है जानू। माँ इस दिवाली पहली बार हमारे घर में रुकी हुई है। वरना वो तो हर साल गाँव में ही दिवाली मनाती है। कम से कम मेरा मन रखने के लिए ही पूछ लेती।
अरे अगर इतना ही माँ पर प्यार उमड़ रहा है तो ख़ुद क्यों नहीं पूछ लेते? झल्लाकर चीखी थी जानू और कंधे पर हैंड बैग लटकाते हुए तेज़ी से घर के बाहर निकल गयी।
पति माँ के पास जाकर बोला माँ, हम लोग दीपावली की ख़रीदारी के लिए बाज़ार जा रहे हैं। अगर आपको कुछ चाहिए तो.........।
माँ बीच में ही बोल पड़ी, मुझे कुछ नहीं चाहिए बेटा।
एक बार फिर से सोच लो माँ, अगर कुछ चाहिये तो बता दीजिए हम लेकर आएंगे।
बेटे के बहुत ज़ोर देने पर माँ बोली ठीक है, तुम रुको, मैं लिख कर देती हूँ। तुम्हें और बहू को बहुत ख़रीदारी करनी है, कहीं भूल न जाओ। कहकर उसकी की माँ अपने कमरे में चली गईं। कुछ देर बाद बाहर आईं और सामान की लिस्ट अपने बेटे को थमा दी।
पति ड्राइविंग सीट पर बैठते हुए बोला, देखा जानू, माँ को भी कुछ चाहिए था, पर बोल नहीं रही थीं। मेरे ज़िद करने के बाद उन्होंने लिस्ट बना कर दी है। इंसान जब तक ज़िंदा रहता है, रोटी और कपड़े के अलावा और भी बहुत कुछ चाहिये होता है।
पत्नी ने कहा की, अच्छा बाबा ठीक है, पर पहले मैं अपनी ज़रूरत का सारा सामान ले लूँ । उसके बाद में आप अपनी माँ की लिस्ट देखते रहना। यह कहते हुआ दोनों खरीदारी करने कार से चले गए।
पूरी ख़रीदारी करने के बाद पत्नी बोली, अब मैं बहुत ही थक गयी हूँ, मैं कार में A/C चालू करके बैठती हूँ, आप अपनी माँ के सामान की लिस्ट देख लो और ले कर आ जाओ।
पति बोला, अरे जानू तुम भी चलो। दोनों साथ में माँ के सामान की खरीददारी करते है। फिर साथ घर चलते हैं, मुझे भी आफिस जाने की ज़ल्दी है। देखता हूँ की माँ ने इस दिवाली पर क्या मँगाया है? यह कह कर वह माँ की लिखी हुई पर्ची ज़ेब से निकालता है और.........।
बाप रे! इतनी लंबी लिस्ट ! पता नहीं क्या - क्या मँगाया होगा माँ ने ? उन्होंने ज़रूर अपने गाँव वाले छोटे बेटे के परिवार के लिए बहुत सारे सामान मँगाये होंगे। तभी उसकी पत्नी बोली, और बनो श्रवण कुमार, यह कहते हुए उसकी पत्नी गुस्से से उसकी ओर देखने लगी।
पर ये क्या? पर्ची पढ़ते ही बेटे की आँखों में आँसू ! और लिस्ट पकड़े हुए उसके हाथ सूखे पत्ते की तरह कांप रहे थे। उसका पूरा शरीर जैसे डगमगा गया। मनो वह सुन्न हो गया हो।
यह सब देखते ही उसकी पत्नी बहुत घबरा गयी और बोली क्या हुआ? ऐसा क्या माँग लिया है आपकी माँ ने? ऐसा कहकर उसने अपने पति के हाथों से वह पर्ची झट से छीन ली और ........।
वह हैरान थी, की इतनी बड़ी पर्ची में बस चंद शब्द ही लिखे थे.......।
पर्ची में लिखा था....
"बेटा मुझे दिवाली पर तो क्या किसी भी त्यौहार पर कुछ नहीं चाहिए। फिर भी तुम ज़िद कर रहे हो तो तुम्हे यह पर्ची दे रही हूँ। तुम्हारे शहर की किसी दुकान में अगर मिल जाए तो फ़ुरसत के कुछ पल मेरे लिए लेते आना। ढलती हुई साँझ हूँ अब मैं। बेटा, मुझे गहराते अँधेरे से डर लगने लगा है, बहुत डर लगता है जब मै अकेले रहती हूँ । पल - पल मेरी तरफ़ मौत बढ़ रही है। जानती हूँ इसे टाला नहीं जा सकता, यह अटल सत्य है। पर अकेलेपन से बहुत घबराहट होती है बेटा। तो जब तक मै तुम्हारे घर पर हूँ, तब तक कुछ पल मेरे पास आकर बैठा करो। मेरे पास, कुछ देर के लिए ही सही मेरे बुढ़ापे का अकेलापन बाँट लिया करो। बिन दीप जलाए ही रौशन हो जाएगी मेरी जीवन की साँझ। कितने साल हो गए बेटा तुझे स्पर्श नहीं किया। तुम्हारे सर को सहलाया नहीं। तुम्हारे माथे पर ममता का वो चुम्बन दिए हुए कई अरसा बीत गया। तुम्हारे बचपन के प्यार की वो यादें ताजा करने के लिए मेरे पास कुछ समय निकाल कर आ जाओ। एक बार फिर से, मेरी गोद में सर रखो और मैं ममता भरी हथेली से सहलाऊँ तेरे सर को। एक बार फिर से इतराए मेरा मन। मुझे ममता की वो सारी खुशिया दे दो, जिसको मै अपने आंचल में में समेट कर प्रफुल्लित होऊ और मुस्कुरा कर मिलूँ मौत के गले। क्या पता अगली दिवाली तक रहूँ ना रहूँ.....।
पर्ची की आख़िरी लाइन पढ़ते - पढ़ते उसकी पत्नी फफक-फफक कर रो पड़ी........। दोनों पति पत्नी एक दूसरे के गले से लिपट कर रोने लगे।
ऐसी ही होती हैं माँ.......।
दोस्तो, अपने घर के उन विशाल हृदय वाले लोगों, जिनको आप बूढ़े और बुढ़िया की श्रेणी में रखते हैं, वे आपके जीवन के नींव हैं। उनका सर्वदा आदर-सम्मान, सेवा-सुश्रुषा और देखभाल अवश्य करें। यक़ीन मानिए, आपके भी बूढ़े होने के दिन जल्दी ही आने वाले हैं। उसकी तैयारी आज से ही कर लें। इसमें कोई शक़ नहीं, आपके अच्छे-बुरे कर्म देर-सवेर आप ही के पास लौट कर आने हैं। इस लिए अभी से सावधान हो जाइये।
अगर इस पोस्ट ने आपके दिल को अंदर से झकझोर दिया है, आपके मन में फिर से प्यार जगा दिया है तो मेरी मेहनत सफल हो गई। यदि यह पोस्ट आपको अच्छी लगी हो तो कृपया इस दिवाली पर आप इसे अपने दोस्तों रिश्तेदारों में जरूर शेयर करे। क्या पता इस पोस्ट से किसीका ह्रदय परिवर्तन हो जाये, और वो उसी समय अपने घर चला जाये दीवाली मानाने। तो मै अपने आपको धन्य समझूंगा।
साथियों बहुत जल्द ही मै अपनी नई पोस्ट के साथ आपके सामने हाजिर होऊंगा। इसी वादे के साथ सदर प्रणाम।
धन्यवाद् !
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