Story of Haare ke sahare khatu wale shyam baba ( हारे के सहारे खाटूवाले श्याम बाबा की कहानी। )

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जय श्री श्याम मित्रों,


परिचय

मंदिर कहां है?

मंदिर की विशेताएं क्या है?

कौन थे खाटू वाले श्याम बाबा?

कैसे निर्माण हुआ खाटू वाले श्याम बाबा का मंदिर?


परिचय

हारे के सहारे खाटू वाले श्याम बाबा की जय। दोस्तों खाटू वाले श्याम बाबा के दरबार से आज तक कोई भी खाली हाथ नहीं गया। बाबा की कहानी आज कलयुग में किसी से भी छुपी हुई नहीं है। श्याम प्रेमी जितने भी लोग हैं सभी को बाबा की कहानी पता है। इस कलयुग में बाबा के चमत्कारों को सब जानते हैं इसीलिए कहा गया है कि हारे के सहारे खाटू वाले श्याम बाबा कलयुग में कृष्ण के अवतार  हैं। उन्हें कृष्ण का यह वरदान है कि वह कलयुग में श्याम नाम से विख्यात होंगे तथा श्याम नाम से ही भक्त लोग उनकी पूजा करेंगे। तथा उनके ही आशीर्वाद से बाबा के सदा गुणगान करते रहेंगे।




दोस्तों खाटू वाले श्याम बाबा का मंदिर राजस्थान में सेखावटी छेत्र के पास शिकर जिले के एक खाटू गांव में स्थित है। जो खाटू वाले श्याम मंदिर के नाम से विख्यात है। सीकर से यह मंदिर 48 किलोमीटर दूर है। दोस्तों फाल्गुन मास के शुक्ल पक्ष की बारस को याने फरवरी और मार्च के बीच श्याम बाबा का एक बहुत ही बड़ा और विशाल मेला लगता है। देश विदेश के लाखों श्याम भक्त इस मेले में आते हैं। मित्रों राजस्थान के सबसे बड़े मेलों में से एक है यह श्यामजी का मेला।

मंदिर की विशेताएं क्या है?


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दोस्तों श्याम बाबा के मंदिर की सबसे बड़ी विशेषता यह है कि यहां पर श्याम बाबा का शीश है। तथा धनुष पर तीन बाणों वाला दृश्य बड़ा ही सुहावना लगता है। श्याम बाबा का मंदिर सफेद संगमरमर से बना हुआ है। यह मंदिर 3 मंजिलें में बना हुआ है। नीचे में श्याम बाबा की मूर्ति विराजमान है जहां पर भक्तगण उनके शीश के दर्शन करके अपनी मनोकामना पूर्ण करते हैं। ऊपर में पूजा संबंधित कार्य किए जाते हैं। मंदिर का शिखर अर्ध गोलाकार है। तथा अगल-बगल दो छोटे-छोटे गुंबद स्थित है। मंदिर का द्वार एक बहुत ही सुंदर आकार में डिजाइन किया गया है जोकि देखने में अति सुंदर प्रतीत होता है। शरद ऋतु में यह मंदिर प्रातः 5:30 बजे से लेकर 10:00 बजे तक तथा शाम को 4:00 बजे से लेकर 9:00 बजे रात्रि तक खुला रहता है। गर्मी के दिनों में समय में थोड़ा सा परिवर्तन कर दिया जाता है। जिसमें मंदिर खुलने का समय प्रातः 4:15 बजे से लेकर 12:00 बजे तक तथा शाम के समय 4:00 बजे से 10:00 बजे रात्रि तक खुला रहता है। पहले समय में खाटू श्याम जी के यहां ठहरने की व्यवस्था बहुत कम थी मतलब पहले ठहरने के इतने साधन नहीं थे कि वहां पर जनसमूह रुक सके। परंतु अब धर्मशाला होटल और अनेक अतिथि गृह निर्माण हो चुके हैं। जिसके कारण ठहरने की व्यवस्था काफी सुदृढ़ हो चुकी है अब वहां पर किसी को भी ठहरने में किसी भी दिक्कत का सामना नहीं करना पड़ता है। जब मेले का समय होता है तब वहां के स्थानीय प्रशासन द्वारा कई व्यवस्था की जाती है जो कि श्रद्धालुओं के लिए अत्यंत सुविधा पूर्ण होती है।

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दोस्तों इस कहानी को मन लगाकर सुने अथवा पढ़ें क्योंकि इसके सुनने मात्र से ही श्रद्धालुओं का कल्याण हो जाता है। तो चलिए आपको बताते हैं की कौन थे हमारे श्री खाटू वाले श्याम बाबा! दोस्तों यह कहानी महाभारत काल से संबंध रखती है। खाटू वाले श्याम बाबा का नाम बर्बरीक था। बर्बरीक महाभारत  भीम और हिडिंबा के पुत्र घटोत्कच, तथा घटोत्कच एवं नाग कन्या के पुत्र थे। तथा भीम के नाती थे। वह बचपन से ही एक वीर योद्धा थे, युद्ध की शिक्षा उन्होंने अपनी माता से ली थी। उनकी माता ने उन्हें युद्ध कला में पारंगत कर दिया था। इसके पश्चात वीर बर्बरीक ने भगवान शंकर की घोर तपस्या की और शिवजी को प्रसन्न कर लिया। तथा वरदान स्वरुप उन्होंने भगवान शंकर से 3 अभेद्य बाण प्राप्त कर लिया। यह तीन बाण इतने प्रभावशाली व अभेद्य थे, की उनसे तीनों लोकों पर विजय प्राप्त की जा सकती थी। इन तीनों बाणों को एक विशेष धनुष से चलाया जाता था। और वह धनुष अग्निदेव के पास था। अतः बर्बरीक ने अग्नि देव को तपस्या द्वारा प्रसन्न करके वह धनुष प्राप्त कर लिया। और त्रिलोक विजय की क्षमता रखने वाले बर्बरीक माता की आज्ञा लेकर चल पड़े महाभारत का युद्ध करने के लिए। 

महाभारत का युद्ध कौरव और पांडव के बीच चल रहा था। माता की आज्ञा के अनुसार उन्हें जो दल हार रहा है उसके साथ ही युद्ध करना था अर्थात उनकी माता ने उन्हें यह आज्ञा दी थी कि जो युद्ध में हारेगा तुम उसके तरफ से ही युद्ध करोगे। तुम्हें हारे का सहारा बनना है। बर्बरीक ने भी अपनी माता को यह वचन दिया की युद्ध में जो दल हार रहा होगा मैं उसका हि साथ दूंगा। इसी वचन का पालन करने के लिए बर्बरीक कुरुक्षेत्र की ओर प्रस्थान कर चुके थे। जब वह कुरुक्षेत्र की ओर प्रस्थान कर चुके थे उस समय श्री कृष्ण भगवान को यह चिंता सताने लगी कि अगर यह युद्ध करेगा तो एक ही दिन में युद्ध समाप्त हो जाएगा, मुझे किसी तरह इसे रोकना होगा इसी विचार से श्री कृष्ण भगवान ने एक ब्राह्मण का रूप लेकर बर्बरीक के पास जा पहुंचे और उससे बोले ऐ बालक तुम अस्त्र-शस्त्र से सुसज्जित होकर कहां जा रहे हो। 

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बर्बरीक ने कहा की मैं महाभारत का युद्ध लड़ने जा रहा हूं मेरी युद्ध में भाग लेने की इच्छा भी है और माता की आज्ञा भी है क्योंकि मेरी माता ने मुझसे कहा है कि तुम हारे के सहारे बनना इसलिए जो पक्ष हार रहा होगा मैं उसी का साथ दूंगा और हारे का सहारा बनूंगा। इस पर भगवान श्री कृष्ण ने कहा बेटा यह महाभारत का युद्ध है, इस युद्ध में भारतवर्ष के बड़े से बड़े योद्धा आए हैं जिनके पास अस्त्र शस्त्रों का भंडार है जो एक से एक वीर और महावीर है। उन महान योद्धाओं से युद्ध करना तो दूर की बात है तुम उनके सामने खड़े भी नहीं रह सकते। महाभारत के युद्ध में भाग लेने जा रहे हो और एक धनुष तथा तीन बाण लेकर। बेटा यह युद्ध बच्चों के खेलने की चीज नहीं है तुम घर लौट जाओ और जाकर अपने मित्रों के साथ खेलो क्योंकि तीन बाण लेकर तुम युद्ध नहीं कर सकते हो। इस तरह ब्राह्मण वेश धारी भगवान श्री कृष्ण ने बर्बरीक का मजाक उड़ाया। 

तब बर्बरीक ने उस ब्राह्मण से कहा कि मेरे पास तो तीन बाण है, मेरा एक ही बाण शत्रु की सेना को परास्त करने के लिए काफी है यह एक बाण शत्रु सेना को परास्त करके मेरे तुनीर में वापस आ जा जायेगा। ब्राह्मण देवता मुझे दूसरे बाण की आवश्यकता ही नहीं पड़ेगी, और मेरे पास तो 3 बाण है। यदि मैंने तीनों बाण चला दिया तो तीनों लोकों में हाहाकार मच जाएगा। यह सुनने के बाद ब्राह्मण वेश धारी भगवान श्री कृष्ण ने कहा कि अगर तुम्हारे बाण इतने ही चमत्कारी है तो मैं इनका चमत्कार अवश्य देखना चाहूंगा। मैं तुम्हें यह चुनौती देता हूं कि तुम एक ही बार से इस पीपल के सारे पत्तों को छेद कर दिखाओ यह काम तुम्हें एक बाण से एक ही बार में करना है चाहे पत्ते पेड़ पर हो या नीचे हो एक भी पत्ता छूटना नहीं चाहिए यदि ऐसा तुमने कर दिया तो मैं मान जाऊंगा कि तुम्हारे बाण सचमुच चमत्कारी है।

वीर बर्बरीक ने यह चुनौती स्वीकार कर ली उन्होंने अपने तूणीर से एक बाण निकाला और शंकर भगवान का स्मरण करते हुए उसे पीपल की तरफ बाण चला दिया। उस एक बाण ने पलक झपकते ही पीपल के सारे पत्तों को छेद दिया दो पत्ते ऊपर लगे थे उन्हें भी छोड़ दिया और जो नीचे गिरे थे उन्हें भी छेद दिया और आकर श्री कृष्ण भगवान के पैर के ऊपर इधर उधर घूमने लगा। तब बर्बरीक ने कहा कि हे प्रभु शायद आपके पैर के नीचे कोई पीपल का पत्ता दब गया है, इसलिए यह बाण आपके पैर के ऊपर चक्कर लगा रहा है कृपया अपना पैर हटाइए जैसे ही उस ब्राह्मण ने अपना पैर हटाया, वहां एक पीपल का पत्ता भगवान ने जानबूझकर छुपा लिया था उसे छेद कर वापस तुनीर मैं चला गया। 
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सब देखकर भगवान श्री कृष्ण यह समझ चुके थे कि यह सब बाबा भोलेनाथ के वरदान का परिणाम है। तब भगवान श्रीकृष्ण ने बर्बरीक से पूछा की तुम इस युद्ध में किसका साथ दोगे। इस पर बर्बरीक बोले हे महात्मा जो इस युद्ध में हार रहा होगा मैं उसके ही तरफ से युद्ध करूंगा। क्योंकि मैं अपनी माता को यह वचन देकर आया हूं कि मैं हारे का सहारा बनूंगा। तब भगवान श्रीकृष्ण ने कहा कि मुझे कुछ दान चाहिए क्या तुम दे सकोगे? वीर बर्बरीक ने कहा ब्राह्मण देवता मांगिए, आपकी जो भी अभिलाषा है वह बोलिए। यदि वह मेरे सामर्थ्य में हुई तो मैं तत्काल उसे पूरा करूंगा। यह मेरा वचन है।

तब ब्राह्मण वेषधारी भगवान श्री कृष्ण ने कहा कि मुझे तुम्हारा शीश चाहिए, क्या तुम दे सकोगे? बर्बरीक ने जैसे ही या सुना वह कुछ क्षणों के लिए सोच में पड़ गए फिर वह समझ गए कि यह कोई मामूली ब्राह्मण नहीं है तब उन्होंने हाथ जोड़कर विनम्रता के साथ कहा कि हे महात्मा आप कोई साधारण ब्राह्मण नहीं है कृपया अपने वास्तविक रूप में आइए। तब ब्राह्मण वेषधारी भगवान श्री कृष्ण अपने वास्तविक रूप में आ गए और वीर बर्बरीक को अपने विराट रूप का दर्शन कराया। बर्बरीक ने कृष्ण से यह प्रार्थना की, हे प्रभु मेरी दो इच्छा है। मेरे शरीर को अग्नि आप के हाथों से प्राप्त हो। और शुरू से लेकर आखरी तक युद्ध देखने की मेरी इच्छा है। मैं इस पूरे युद्ध को देखना चाहता हूं। कृष्ण ने बर्बरीक की इस इच्छा को स्वीकार कर लिया। 

बर्बरीक ने तुरंत अपनी तेज तलवार से अपना सिर एक ही बार में काट दिया और भगवान श्री कृष्ण के चरणों में अर्पित कर दिया। अब भगवान के वचन के अनुसार जहां पर महाभारत का युद्ध होने वाला था वहीं पर पहाड़ी के ऊपर बर्बरीक के सर को सुशोभित कर दिया गया। वहां से बर्बरीक ने महाभारत का पूरा युद्ध देखा। महाभारत का युद्ध समाप्त हुआ और पांडव कृष्ण के साथ बर्बरीक के दर्शन को पहुंचे। और बर्बरीक के सर से यह पूछा, की हे बर्बरीक इस युद्ध में सबसे महान योद्धा कौन है किसके पराक्रम से यह युद्ध जीता गया। बर्बरीक के शीश ने यह उत्तर दिया की महाभारत का यह युद्ध श्री कृष्ण के बिना जीतना असंभव था। पूरे युद्ध में श्री कृष्ण और उनका सुदर्शन चक्र ही दिखाई दे रहा था। उनके बिना युद्ध जीतना असंभव था। यह सुनकर पांडवों का घमंड चूर चूर हो गया। और श्रीकृष्ण के प्रति उनकी भक्ति और बढ़ गई।

तब भगवान श्रीकृष्ण ने प्रसन्न होकर बर्बरीक को वरदान दिया। और कहा कि कलयुग में तुम श्याम नाम याने मेरे नाम से जाने जाओगे। तुम्हारे इस बलिदान को यह संसार सदा याद रखेगा। तथा तुम्हें शीश के दानी नाम से जाना जाएगा। श्रीकृष्ण ने कहा कि हे पुत्र कलयुग का आरंभ होते ही तुम खाटू नामक स्थान पर प्रगट हो जाना। खंडेला का राजा बहुत ही धार्मिक प्रवृती का है। वहां की धरती बहुत ही पवित्र एवं पावन है। वहां पर लोग तुम्हें खाटू वाले श्याम के नाम से जानेंगे। और तुम शीश के दानी, और हारे के सहारे खाटू वाले श्याम के नाम से विख्यात हो जाओगे। मेरी सारी शक्तियां तुम्हारे साथ ही रहेगी। जो भी व्यक्ति तुम्हारे इस शीश का दर्शन और पूजन करेगा उसके सारे मनोरथ सिद्ध हो जाएंगे, उसकी सारी चिंताओं का अंत होगा। वत्स जबतक यह पृथ्वी रहेगी तबतक तुम लोगों का कल्याण करना। यही मेरा वरदान और तुम्हारे लिए आशिर्वाद है।



तो चलिए भक्तों श्याम बाबा के नाम का स्मरण करते हुए शुरू करते हैं श्याम बाबा के शीश का धरती पर अवतरण की पौराणिक  कहानी। धर्म शास्त्र ज्ञाताओं के अनुसार खाटू वाले श्याम बाबा कलयुग में कृष्ण के अवतार माने जाते हैं। जिन्हें कृष्ण से यह वरदान प्राप्त है कि वह कलयुग में श्याम नाम से पूजे जाएंगे। महाभारत काल के अनुसार बर्बरीक के शीश दान से प्रसन्न होकर भगवान श्री कृष्ण ने उन्हें दो वरदान दिया था। उनके वरदान के अनुसार कलयुग में बाबा श्याम नाम से पूजे जाएंगे और तुम्हारे नाम के स्मरण मात्र से उनका कल्याण होगा तथा उनकी सारी चिंताएं दूर हो जाएगी। भक्तों के प्रेम भाव से पूजा करने पर उनका उद्धार होगा तथा उनकी सारी मनोकामनाएं पूर्ण हो जाएंगी।


दोस्तों चलिए आपको यह बताते हैं की खाटू में बाबा का शीश कहां से आया तथा वहां पर मंदिर की स्थापना कैसे हुई। दोस्तों यह एक छोटी सी कहानी है आप लोग श्रद्धा भाव से इस कहानी को पढ़ें अथवा सुने इसके सुनने मात्र से ही भक्तों के सब दुख दर्द दूर हो जाते हैं। हारे के सहारे बाबा खाटू श्याम की लीला के अनुसार वे अपना शीश खाटू नगरी में स्थित श्याम कुंड में अवतरित करते हैं। शिकर जिले के समीप स्थित खाटू नगरी में यह कुंड है। श्यामकुंड के समीप एक गाय रोजाना घास चरने जाती थी। वह गाय रोजाना जमीन की एक भाग पर खड़ी हो जाती थी। और वहां पर स्वयं ही उसके दूध की धार निकलती थी और धरती में समा जाती थी। ऐसा लगता था जैसे कोई जमीन के अंदर से ही गौ माता का दूध पी रहा हो। 
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जब गाय घर पर जाती थी तब गाय का मालिक दूध निकालने के लिए जाता तो उसे दूध नहीं मिलता था, वह कितना भी दूध दुहने का प्रयत्न कर ले लेकिन दूध नहीं मिलता था। यह सिलसिला कई दिनों तक चलता रहा। गाय रोज वहां जाती, और अपना सारा दूध उसी जमीन पर निकाल देती थी। तथा जब वह घर आती तब गाय के मालिक को दूध नहीं मिल पाता था। इस घटना से गाय का मालिक बहुत परेशान हो गया। उसने सोचा की जरूर कुछ न कुछ गड़बड़ है जो मेरी गाय रोज घास चरने जाती है। कोई ना कोई चोर अवश्य है जो मेरी गाय का दूध निकाल लेता है, या दूध चुरा लेता है और मैं खाली रह जाता हूं। वरना ऐसा तो कभी नहीं हुआ। पहले तो मेरी गाय रोज दूध देती थी। ये कुछ ही दिनों से हो रहा है। मुझे पता लगाना चाहिए कि, वह कौन सा चोर है जो यह कार्य कर रहा है।

यही सोच कर गाय का मालिक एक दिन उस गाय के पिछे पिछे जंगल में गया। वहां उसने यह नजारा देखा कि, गाय कैसे एक स्थान पर खड़ी है, और उसका सारा दूध धरती में समा रहा है। यह सब देख कर गाय के मालिक को अपनी आंखों पर विश्वास नहीं हो रहा था। यह सब कुछ वह देखता ही रह गया। ऐसा लगता था जैसे कि कोई जमीन के अंदर बैठ कर गाय का दूध पी रहा है। यह सब देख कर वह तुरन्त अपने गांव की तरफ भागा। वह सीधे राजा के पास गया। और राजा को पूरा आंखों देखा हाल सुनाया। की कैसे उसकी गाय रोज एक स्थान पर जाकर खड़ी हो जाती है और अपना सरा दूध जमीन पर गीरा देती है, जैसे उसका दूध कोई जमीन के अंदर से पी रहा हो। राजा के दरबार में सबने उसका मजाक उड़ाया। कोई उसकी बात पर यकीन नहीं कर रहा था। सब यही कह रहे थे कि वह पागल हो गया है। 

लेकिन वह आदमी हर बार राजा को यही बात बताई। तो राजा ने सोचा कि क्यों ना चल कर देखा जाए कि यह क्या माजरा है। राजा के मन में भी वह देखने कि जिज्ञासा उठी। वह अपने कुछ दरबारियों को लेकर उस स्थान पर पहुंच गए। जहां पर वह गाय दूध की धारा गिराती थी। जब राजा और उसके दरबारियों ने स्वयं अपनी आंखों से देखा कि कैसे वह गाय अपने आप अपना सारा दूध जमीन पर गिरा रही है। यह देख कर राजा ने कुछ मजदूरों को बुलाकर उस स्थान की खुदाई का कार्य शुरू करवा दिया। खुदाई धरती के उसी हिस्से पर शुरू हुई जहां पर वह गाय अपना दूध गिरा रही थी।

खुदाई का कार्य करते समय उस जमीन से आवाज आई कि धिरे धिरे खुदाई करो, यहां पर मेरा शीश है। इसलिए आप संभाल कर खुदाई का कार्य करो। उसी रात बाबा ने राजा को स्वप्न में दर्शन देकर कहा कि हे राजन मेरा धरती पर अवतरण होने का समय आ गया है। मैं महाभारत काल का वीर बर्बरीक हूं। मैंने अपना सर भगवान श्रीकृष्ण को दान में दिया था। इसी के फल स्वरूप भगवान ने मुझे यह वरदान दिया था की कलयुग में तुम्हारी पूजा होगी। हे राजन जहां तुम खुदाई कर रहे हो, वहां तुम्हें मेरा शीश मिलेगा। मेरा शीश तुम्हें खाटू में ही ही स्थापित करना होगा। 

खाटू में ही तुम्हें श्याम नाम का मंदिर बनाना होगा। जिससे सबका कल्याण होगा। सुबह जागने के बाद राजा खुदाई वाले स्थान पर पहुंच गए। और सपने को ध्यान में रखते हुए खुदाई का काम शुरू हुआ। खुदाई में श्याम बाबा का सिर मिलता है। राजा ने पूरी श्रद्धा और विश्वास के साथ श्याम बाबा के मंदिर का निर्माण करवाया और शीश को उस मंदिर में स्थापित किया। तो दोस्तों इस तरह से खाटू वाले श्याम बाबा के मंदिर का निर्माण हुआ।




आज हिन्दुस्तान के लगभग हर शहर में श्याम बाबा का मंदिर है। श्याम बाबा के भक्तों ने ही इन मंदिरों का निर्माण किया है। लेकिन सबसे ज्यादा प्रभावित और चमत्कारी मंदिर हारे के सहारे खाटू वाले श्याम बाबा का ही है। जो खाटू में स्थित है। दोस्तों अगर आप को कभी खाटू जाने का अवसर मिले तो आप एक बार इस मंदिर में जरूर जाइए, और हारे के सहारे खाटू वाले श्याम बाबा के दर्शन का लाभ अवश्य उठाएं। शायद आप के रुके हुए काम, वहां जाने से पूरे हो जाएं। हारे के सहारे खाटू वाले श्याम बाबा आप को हर जगह जीत दिलाएं, इसी शुभ कामनाओंं के साथ मैं अपने शब्द समाप्त करने की अनुानित चाहता हूं।

धन्यवाद!



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