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अपने पापा को समझने में कितना समय लगता है ? 



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एक पुत्र अपने पिता को अपनी उम्र के हिसाब से किस तरह समझता है। आज आपको इस पोस्ट के माध्यम से बताने की कोशिश कर रहे है। मुझे उम्मीद है की आप गलतियों को नजरअंदाज करके उम्र के उन पड़ाव को समझने की कोशिश करेंगे। 

4-5 साल की उम्र में बेटा ये सोचता है की मेरे पापा महान आदमी है। 

6-7 साल की उम्र में बेटा यह सोचता है की मेरे पापा सब कुछ जानते है। वो बहुत होशियार है। 

10-11 साल की उम्र में बेटा ये सोचता है की, अच्छे तो है लेकिन बहुत गुस्से वाले है। 

जब वही बेटा 12  साल का होता है, तो उसकी सोच में परिवर्तन आता है। और वो सोचता है की जब मै छोटा था तब मेरे पापा मेरे साथ अच्छा व्यव्हार करते थे। 

16-17 साल की उम्र बहुत खतरनाक होती है। इस उम्र में बच्चो के मन में नकारात्मक विचार आते है। वे सोचते है की मेरे पापा आज के समय के हिसाब से नहीं चलते। उनके हिसाब से उनके पिताजी को कोई ज्ञान ही नहीं है। 

18-19 साल की उम्र में बच्चों को लगता है की उनके पापा चिड़चिड़े और अव्यवहारिक होते जा रहे है। 

20-21 साल की उम्र तक बच्चों का दिमाग ये सोचता है की मम्मी,  पापा के साथ इतने दिनों से कैसे रह रही है। इनके साथ तो रहना भी मुश्किल हो गया है। इनकी हरकतें अब असहनीय हो गयी है। 


25-26  साल की उम्र के बच्चे यह सोचते है की उनके पापा को दुनिया-दारी की समझ नहीं है। वो हर बात में उनका विरोध करते है। उनको ये समझ कब आएगी भगवान जाने। 


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30-31 साल की उम्र में वो सोचता है की मेरे बेटों को संभालना कितना मुश्किल होता जा रहा है। इस उम्र में मै अपने पापा से कितना डरता था। 

40-41 वर्ष की उम्र में बेटे को उसका बचपन याद आ जाता है की उनको उनके पापा ने कितने अनुशासन में पाल-पोस कर बड़ा किया। और आज-कल के बच्चों में ना कोई अनुशासन है और ना ही शिष्टाचार। 

50-51 साल के होते होते बेटों में ये समझ आ जाती है की आज-कल तो एक बच्चे को पालने में और उसका खर्चा उठाने में हालत टाइट हो जाती है। फिर हमारे पिताजी ने हम चार भाई बहनों को कैसे कितनी मुश्किलों में बड़ा किया होगा। 

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55-56 साल के होते होते बेटो को उनके पिताजी पर नाज़ होता है। वे सोचते है की उनके पिताजी कितने दूरदृष्टि वाले थे। उन्होंने अपने चारों बच्चों को पढ़ाया लिखाया। और इस काबिल बनाया की वो अपना जीवन व्यवस्थित जी सके। आज वृद्धा अवस्था में भी हम संयमपूर्वक सुखी जीवन जी रहे है ये भी उनकी ही देन है। 

60-61 साल की उम्र में बेटे का विचार - हमारे पिताजी महान थे। एवं जिंदादिल इंसान थे। जबतक वो जिन्दा रहे तब तक हम सभी भाई बहनो का पूरा ख्याल रखा। और आज उनके स्वर्गवास के बाद उनकी एक-एक बात हमें खुली किताब की तरह याद आती है। उनका वो अनुशासन और अपने फर्ज के प्रति उनकी समर्पण भावना, अपने बच्चों के प्रति उनका प्यार कैसा था ये सब याद आता है। 

ऐसा लगता है की मानो पिताजी हमारे साथ में ही है। जब भी मै उनके जीवन के बारे में सोचता हूँ तो ऐसा लगता है  मानो परमेश्वर सदा ही हमारे साथ थे। हमने ही उन्हें पहचानने में गलती कर दी  



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सच बात तो ये है की अपने पिताजी को समझने में पूरी जिंदगी कम है। उम्र के हर मोढ़ पर उनके प्रति हमारी सोच बदल जाती है। पिताजी ऐसे विशाल एवं गहरे समंदर जिसमे आप जितनी गहराई तक जाओगे उतने ही विचारों के हीरे मोती मिलेंगे। अपने पापा को समझने के लिए 60-65 साल की उम्र भी कम ही है। 

माँ तो सिर्फ यही पूछती है की बेटा कुछ खाया की नहीं। लेकिन बेटा जिंदगी भर कैसे खायेगा इसकी चिंता केवल एक पिता ही कर सकता है। और वो अपने बच्चो को ऐसी शिक्षा देता है की वो जिंदगी भर कमा के खा सके और दूसरों की मदत कर सके। 

माँ अपने बच्चो को लव यू बेटा बोल देती है। लेकिन एक बाप अपने बच्चो को कभी भी लव यू नहीं बोलता। वह कर के दिखता है। पता है क्यों, क्योंकि पिता रोटी, कपडा और माकन है। पिता है तो घर में हर-पल  राग है। पिता से ही मेरी माँ की चूड़ी बिंदी और सुहाग है। पिता है तो बच्चों के सपने है। पिता है तो बाजार के सब खिलौने अपने है। दोस्तों ऐसे है हमारे पिताजी। 

आजकी नई पीढ़ी के पास अपने माँ बाप के साथ बैठने का वक्त ही नहीं है। आजकल लोग फेसबुक, ट्विटर, इंस्टाग्राम, व्हाट्सप्प जैसी सोशल मिडिया के साथ अपना वक्त बिताते है। वो ये समझते है की इन सबका इस्तेमाल करके वो लोग स्मार्ट हो रहे है। 

जबकि उनको ये नहीं पता है की ये जो सोशल मिडिया है वो उन्हें स्मार्ट नहीं अपंग बना रहा है। किसी को भी पूछ लो की इंस्टाग्राम या फेसबुक पर आप के फालोवर कितने है तो जवाब लाखों में आएगा। लेकिन जब आप कभी किसी मुश्किल में पड़ोगे तो उनमे से एक भी आपकी सहायता के लिए नहीं आएगा। 


एक बात याद रखना की बाप की आँखों में आंसू बस दो ही बार आते है। " एक जब बेटी घर छोड़ दे। और दूसरा जब बेटा मुंह मोड़ ले तब। " दोस्तों ये दो लाइन आपको बहुत छोटी लग रही हो। लेकिन जब आप उस मुकाम पर पहुंचोगे तब आप उसकी अहमियत और उसकी गहराई को समझ सकोगे।  

इसलिए कोई ऐसा काम मत करना जिससे आपके पापा के दिल पर चोट लगे और उनके आँखों में आंसू आये। बाकि आप लोग खुद ही समझदार हो। कहते है की समझदार को इशारा काफी होता है। यदि ये पोस्ट आपके दिल को जरा सा भी स्पर्श कर ले तो मेरी मेहनत सफल हो जाएगी। और हाँ ये पोस्ट उन तक जरूर पहुंचना जिनको इसकी बहुत जरुरत है। क्या पता किसी भाई का दिल पसीज जाये और वो पाप करने से बच जाये। 

इन्ही पंक्तियों के साथ मै अपनी ये पोस्ट समाप्त करता हूँ। बहुत जल्द ही मै एक नई जानकारी के साथ आपके सामने हाजिर होऊंगा। तबतक के लिए आपसे विदा लेता हूँ। 

धन्यवाद् !


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