इस यात्रा का नाम है, " बुढ़ापे से बचपन की ओर " जो मेरे भाई लोग " ४५ " को पार कर गये हैं या करीब हैं उनके लिए यह पोस्ट खास है। मेरा मानना है कि, दुनिया में जितना बदलाव हमारी पीढ़ी ने देखा है, हमारे बाद शायद ही किसी पीढ़ी को इतने बदलाव देखने को मिले।
बुढ़ापे से बचपन की ओर
नमस्कार दोस्तों,
आपने यात्राएं तो बहुत कि है, चलिए आज मै आपको एक ऐसी यात्रा करवाता हु, जो आपकी सोच को सोचने पर मजबूर कर देगी " एक नई सोच " और मुझे पूरा विश्वास है कि आपको इस यात्रा में इतना आनंद आएगा जितना आपको इससे पहले कभी नहीं आया होगा। आप यह पोस्ट only4us.in में पढ़ रहे हैं।
इस यात्रा का नाम है, " बुढ़ापे से बचपन की ओर " जो मेरे भाई लोग " 45 " को पार कर गये हैं या करीब हैं उनके लिए यह पोस्ट खास है। मेरा मानना है कि, दुनिया में जितना बदलाव हमारी पीढ़ी ने देखा है, हमारे बाद शायद ही किसी पीढ़ी को इतने बदलाव देखने को मिले।
हम वो आखिरी पीढ़ी के लोग हैं जिन्होंने बैलगाड़ी से लेकर सुपर सोनिका जेट तक देखे हैं। बैरंन चिट्ठी से लेकर लाइव चैटिंग तक देखा है , और "वर्चुअल मीटिंग जैसी" असंभव लगने वाली बहुत सी चीजों को सम्भव होते हुए देखा है।
हम वो पीढ़ी है, जिन्होंने कई-कई बार मिटटी के घरों में बैठ कर , परियों और राजाओं की कहानियां सुनीं हैं। जमीन पर बैठकर खाना खाया है। प्लेट में डाल डाल कर चाय पी है।
हम वो लोग हैं ?
जिन्होंने बचपन में गांव के मैदानों में अपने दोस्तों के साथ पम्परागत खेल जैसे, गिल्ली-डंडा, छुपा-छिपी, खो-खो, कबड्डी, कंचे, चिकई, पोसंपा, चोर-पुलिस, दूल्हा-दुल्हिन आदि जैसे खेल, खेले हैं ।
हम आखरी पीढ़ी के वो लोग हैं ?
जिन्होंने चांदनी रात, ढिबरी, लालटेन , या बल्ब की पीली रोशनी में होम वर्क किया है। और दिन के उजाले में चादर के अंदर छिपकर नावेल और कॉमिक्स पढ़े हैं।
हम वही पीढ़ी के लोग हैं ?
जिन्होंने अपनों के लिए अपने जज़्बात, चिट्ठियों में आदान प्रदान किये हैं। और उन चिट्ठियों के पहुंचने और जवाब के वापस आने में महीनों तक इंतजार किया है।
हम उसी आखरी पीढ़ी के लोग हैं ?
जिन्होंने कूलर, एसी या हीटर के बिना ही बचपन गुज़ारा है। और बिजली के बिना भी गुज़ारा किया है।
हम वो आखरी लोग हैं ?
जो अक्सर अपने बालों में, सरसों का तेल लगाकर, स्कूल, शादियों और निमंत्रण में जाया करते थे।
हम वो आखरी पीढ़ी के लोग हैं ?
जिन्होंने स्याही वाली दावात या पेन से कॉपी, किताबें, कपडे और हाथ काले, नीले किये है। तख़्ती पर सेठे की क़लम से लिखा है और तख़्ती धोई है।
हम वो आखरी लोग हैं ?
जिन्होंने मास्टर साहब से मार खाई है। और घर में मास्टर साहब कि शिकायत करने पर फिर मार खाई है।
हम वो आखरी लोग हैं ?
जो गांव के बुज़ुर्गों को दूर से देख कर, नुक्कड़ से भाग कर, घर आ जाया करते थे। और समाज के बड़े बूढों की इज़्ज़त, डरने की हद तक करते थे।
हम वो आखरी लोग हैं ?
जिन्होंने अपने स्कूल के सफ़ेद केनवास जूतों पर, खड़िया का पेस्ट लगा कर चमकाया हैं। और काले जूतों को सरसो के तेल से चमकाया है।
हम वो आखरी लोग हैं ?
जिन्होंने गोदरेज सोप की गोल डिबिया से साबुन लगाकर दाढ़ी बनाई है। हमने गुड़ की चाय भी पी है। बहुत समय तक सुबह काला दन्त मंजन और लाल दंत मंजन तथा सफेद टूथ पाउडर का इस्तेमाल भी किया है और कभी-कभी तो नमक से या लकड़ी के कोयले से और नीम कि दातून से दांत साफ किए हैं।
हम निश्चित ही वो लोग हैं ?
जिन्होंने चांदनी रातों में, रेडियो पर BBC की ख़बरें, विविध भारती, आल इंडिया रेडियो, बिनाका गीत माला और हवा महल जैसे प्रोग्राम पूरी शिद्दत से सुने हैं।
हम वो आखरी लोग हैं ?
जो गर्मियों में शाम होते ही छत पर पानी का छिड़काव किया करते थे। उसके बाद सफ़ेद चादरें या गमछा बिछा कर सो जाया करते थे। एक स्टैंड वाला पंखा सब को हवा देता था। सुबह सूरज निकलने के बाद भी ढीठ बने सोते रहते थे। और मां कि गालियों के साथ उठाते थे। और ठंढियों में पहल पर सो जाया करते थे। वो सब दौर अब बीत गया। चादरें अब नहीं बिछा करतीं है। डब्बों जैसे कमरों में कूलर और एसी के सामने रात होती है और दिन गुज़रते हैं।
हम वो पीढ़ी के लोग है ?
जिन्होंने अपने पिताजी के कन्धों पर बैठ के मेला देखा है। उनके कन्धों पर बैठ के बाजार घुमा है। हम वो आखिरी लोग है जो साइकल के टायर को लकड़ी से चलाकर पूरा गांव घूम आते थे। तब ऐसा लगता था जैसे प्लेन का सफर कर के आ रहे है।
काश मेरा वो " बचपन " कोई लौटा सकता !
हम वो आखरी पीढ़ी के लोग हैं ?
जिन्होने खूबसूरत रिश्ते और उनकी मिठास बांटने वाले लोगों को देखे हैं, वो लोग अब लगातार कम होते चले जा रहे है। अब तो लोग जितना ज्यादा पढ़ लिख रहे हैं, उतना ही खुदगर्ज़ी, बेमुरव्वती, अनिश्चितता, अकेलेपन, और निराशा में खोते जा रहे हैं।
हम वो खुशनसीब लोग हैं ?
जिन्होंने रिश्तों की मिठास महसूस की है, और हम इस दुनिया के वो लोग भी हैं , जिन्होंने एक ऐसा "अविश्वसनीय सा" लगने वाला नजारा देखा है ?
आज के इस करोना काल में परिवारिक रिश्तेदारों (बहुत से पति-पत्नी , बाप - बेटा ,भाई - बहन आदि ) को एक दूसरे को छूने से डरते हुए भी देखा है। पारिवारिक रिश्तेदारों की तो बात ही क्या करे , खुद आदमी को अपने ही हाथ से , अपनी ही नाक और मुंह को , छूने से डरते हुए भी देखा है। अर्थी को बिना चार कंधों के , श्मशान घाट पर जाते हुए भी देखा है। पार्थिव शरीर को दूर से ही अग्नि दाग लगाते हुए भी देखा है।
हम आज की एकमात्र वह पीढी है ?
जिसने अपने " माँ-बाप "की बात भी मानी और अपने " बच्चों " की बात भी मान रहे है।
शादी मे बफे खाने में वो आनंद नहीं जो पंगत में आता था जैसे
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सब्जी देने वाले को गाइड करना
हिला के दे
या तरी तरी देना!
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उँगलियों के इशारे से लड्डू और गुलाब जामुन लेना।
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पूडी छाँट छाँट के और गरम गरम लेना !.
पीछे वाली पंगत में तांक-झांक के देखना क्या-क्या आ गया !
और अपनी तरफ क्या बाकी है।
जो बाकी है उसके लिए आवाज लगाना
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पास वाले रिश्तेदार के पत्तल में जबरदस्ती पूडी डलवाना।
रायते वाले को आता देखकर फटाफट रायते का दोना पी जाना।
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पहले वाली पंगत कितनी देर में उठेगी। उसके
हिसाब से बैठने की पोजीसन बनाना।
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और आखिर में पानी वाले को खोजना।
एक बात बोलूँ
इनकार मत करना
ये पोस्ट जीतने मरजी लोगों को भेजो
जो इस पोस्ट को पढेगा।
उसको उसका बचपन जरुर याद आयेगा.
और वह आपकी वजह से अपने बचपन के दिनों में चला जाएगा , चाहे कुछ देर के लिए ही सही।
लेकिन बचपन में जायेगा जरूर।
अब यह आप के ऊपर है कि, आप कितने लोगों को पल भर कि ख़ुशी देते हो।
बहुत जल्द ही मै एक नई पोस्ट के साथ आपके सामने फिर हाजिर होऊंगा इसी वादे के साथ
आपसे विदा लेता हूँ।
धन्यवाद् !
यह जानकारी आप (only4us.in) के माध्यम से पढ़ रहे है। (only4us.in) सिर्फ आप के लिए...........
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